Bali phlwan

Add To collaction

गरीबों का हितैषी




      *गरीबों का हितैषी*


नहीं हुआ कोई गरीबों का हितैषी ,
नहीं गरीबों का कोई आधार रहा ।
गरीब के नाम राजनीत कूटनीत ,
गरीब की रोटी नेता का आहार रहा ।।
एक तो श्रमिक यों ही काटते गरीबी ,
मुफ्त भोजन दे बना रहे देहचोर ।
छीन रहे हो श्रमिकों की नौकरी ,
श्रमिक बनेंगे डाकू या फिर चोर।।
उपाय तो बहुत ही सरल चुना है ,
मिटाओ गरीब को मिटेगी गरीबी।
देश में केवल अमीरी ही रहेगी ,
गरीब असहाय नहीं होंगे करीबी।।
गरीब श्रमिक होते सच्चे किसान,
जिसपर है यह भारत आधारित ।
या तो श्रमिक अपराधी ही बनेंगे ,
नहीं हुए जो कुशल व्यवहारित ।।
नहीं चाहिए हमें ये मुफ्त की रोटी,
हमें आहार नहीं आधार चाहिए ।
बीता सकें सपरिवार सुखमय जीवन ,
हमें केवल कोई एक रोजगार चाहिए ।।  
पचास रुपये की छूट देते भोजन में ,
पाँच सौ रुपये तुम बढ़ाते महंगाई ।
अधिकारी नेताओं की चाँदी रहेगी ,
गरीब करेंगे कहाँ से इसकी भरपाई ।।
गरीबों को न सताओ तुभ कदापि,
गरीबों की होती बहुत बुरी आह ।
सारी तमन्नाएँ तेरी धरी रह जाएँगी,
पूरी भी न हो पाएँगी कोई भी चाह ।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना ।

बाली पहलवान 

   8
1 Comments

Gunjan Kamal

29-Mar-2022 10:18 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

Reply